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सत्यपाल मलिक की अंतिम सांस: निडरता की मिसाल चली गई
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सत्यपाल मलिक की अंतिम सांस: निडरता की मिसाल चली गई

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भारतीय राजनीति के एक ऐसे नेता, जो अपने बयानों से हमेशा सुर्खियों में रहे, सत्यपाल मलिक अब हमारे बीच नहीं हैं। 5 अगस्त 2025 को 79 वर्ष की आयु में दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका निधन हो गया । वह लंबे समय से किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और 11 मई से अस्पताल में भर्ती थे । उनके निधन ने भारतीय राजनीति में एक ऐसे अध्याय का अंत कर दिया, जो साहस, बेबाकी और विवादों से भरा था।

एक लंबा और घुमावदार राजनीतिक सफ़र

सत्यपाल मलिक का राजनीतिक करियर लगभग पांच दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने कई पार्टियों का दामन थामा। यह उनके राजनीतिक लचीलेपन और सिद्धांतों के प्रति उनकी अपनी समझ को दिखाता है।

  • शुरुआत: उन्होंने अपना पहला चुनाव 1974 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी 'भारतीय क्रांति दल' से बागपत सीट पर लड़ा और विधायक बने ।

  • कांग्रेस और जनता दल: बाद में वे कांग्रेस में शामिल हुए और राज्यसभा सांसद भी बने। लेकिन बोफोर्स घोटाले के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और वीपी सिंह के 'जनता दल' में शामिल हो गए । 1989 में वे अलीगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए ।

  • बीजेपी में प्रवेश: 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे ।

यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण turning point था, जिसने उन्हें सत्ता के और करीब ला दिया।

राज्यपाल के रूप में महत्वपूर्ण कार्यकाल

सत्यपाल मलिक को बिहार, गोवा, मेघालय और सबसे चर्चित जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया । उनका जम्मू-कश्मीर का कार्यकाल ऐतिहासिक और विवादित दोनों रहा।

जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370

अगस्त 2018 में जब उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया, तो वे दशकों में इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले राजनीतिक व्यक्ति थे । उनके ही कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया, जिसने राज्य का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया । वे जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल थे ।

विवादों से गहरा नाता

राज्यपाल के पद से हटने के बाद सत्यपाल मलिक ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने कई ऐसे बयान दिए, जिनसे राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया।

  • पुलवामा हमला: उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर खुफिया विफलता का आरोप लगाया और कहा कि अगर सुरक्षा में चूक न होती तो यह हमला टाला जा सकता था ।

  • किसान आंदोलन: किसान आंदोलन के दौरान भी वे खुलकर किसानों के समर्थन में आए और सरकार की नीतियों की आलोचना की।

  • भ्रष्टाचार के आरोप: उन्होंने जम्मू-कश्मीर में दो प्रोजेक्ट्स की फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश का सनसनीखेज आरोप लगाया था, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है ।

उनकी बेबाकी ही उनकी असली power थी, जिसने उन्हें हमेशा सुर्खियों में बनाए रखा।

सत्यपाल मलिक एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाएंगे, जो सत्ता में रहकर भी सच कहने का साहस रखते थे। उनका राजनीतिक जीवन इस बात का प्रमाण है कि विचारधाराएं और पार्टियां बदल सकती हैं, लेकिन एक नेता का ज़मीर अगर ज़िंदा हो, तो वह कहीं भी रहकर अपनी आवाज़ बुलंद कर सकता है। उनके उठाए गए सवाल आज भी भारतीय लोकतंत्र में गूंजते हैं और हमेशा गूंजते रहेंगे।


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